योगसाधना के दो हिस्से होते है | एक होता है हठयोग और दूसरा मन का योग | हठयोग मे शरीर
का योग होता है जिसमे विभिन्न आसन तथा कसरत का समावेश होता है | किसी भी योगसाधना मे
स्नायुओं की हलचल कम ही होती है लेकिन उसके कारण उत्पन्न होनेवाला तनाव तथा उस तनाव
का समय यह अलग अलग होता है | इस तरह के शारीरिक योग की सहायता से कई तरह की व्याधियां
ठीक होने मे सहायता मिलती है | अर्थात यह साधना अपने गुरु से सीखना ही उचित होगा अन्यथा
फायदा मिलने के स्थानपर अपाय भी संभव होता है | इसलिय योग्य गुरु देखकर ही शारीरिक
योग की शुरुआत की जा सकती है | मानसिक योग हठयोग ये श्रेष्ठ दर्जे का होता है | पतंजली
योग शास्त्र मे इस योग का वर्णन है | मनुष्य का मन उसके शरीरपर नियंत्रण कर सकता है
| इतना ही नही शरीर की क्षमता की तुलना मे अधिक बात मन की शक्ति के कारण संभव होती
है | कभी कभी किसी बातके लिए हम इतनी शीघ्रता से हलचल करते है कि हमेशा उतनी तेजीसे
वे संभव नही होती है | मनुष्य के मन मे जबरदस्त शक्ती होती है | इसी मन को काबू मे
लाना आवश्यक होता है | गाडी के लिए जिस तरह ड्राइवर की आवश्यकता होती है उसी तरह घोडे
की तरह उछलनेवाले मन को नियंत्रित करने के लिए बुद्धी की आवश्यकता होती है | इस नियंत्रण
को ही मानसिक योग कहा जाता है | अपने भीतर झांकना, ध्यान लगाना या विपश्यना यह सभी
मानसिक योग के प्रकार होते है | हम राधा और कृष्ण का एक अटूट नाता हमेशा सुनते है |
राधा का रिश्ता हमेशा अंतिम माना जाता है | द्वैत स्थिती मे ऐसा रिश्ता संभव नही हो
सकता | इसलिए कई तरह की मीमांसा करते हुए राधा को मिलन का अंतिम बिंदू माना जाता है
| हमारे जीवन की धारा बहिर्गामी होती है लेकिन जब वह उलटी होकर बहने लगती है और अंतर्गामी
बन जाती है तब वह राधा का रुप धारण करती है | यह होता है मन का योग | इसे हम जितनी
अधिक मात्रा मे साध्य कर पायेंगे उतना ही अधिक सुख हमे प्राप्त होगा | हमारे यहां गांधीजी
के तीन बंदरोंका गलत अर्थ लगाया गया | वे बंदर जापान के है | वे कहते है कि बाहर की
दुनिया की बात छोडो, पहले अपनी सोचो और अपनी सुनो | ज्ञान गुफा मे मानसिक योग के सरल
प्रकार भी प्रस्तुत है उनका अनुभव करना आवश्यक है | इस मानसिक स्थिती का तथा ध्यानधारणा
का उपयोग आपको भविष्य मे अवश्य होगा | इस बात की शुरुआत आगे चलकर बढती आयु मे करने
के बजाय उसकी आदत अभी से ही डाल देना उचित होगा |
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